फसल बीमा योजना से पीछे हट रहे किसान

। केंद्र सरकार की तमाम कोशिशों के बाजवूद किसान प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से अपने कदम पीछे खींच रहे हैं। पिछले तीन साल से फसल बीमा योजना में बीमित किसानों की संख्या और खेतों का दायरा लगातार घट रहा है। वहीं, प्रीमियम के रूप में सरकारी-निजी बीमा कंपनियों के मुनाफे का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। फसल बीमा योजना से किसानों के मोहभंग की मुख्य वजह बीमित फसल का मुआवजा समय पर नहीं मिलना और नुकसान का अव्यावहारिक आकलन तंत्र है। प्राकृतिक आपदा में फसलों को नुकसान पहुंचने पर केंद्र सरकार ने किसानों को उसकी भरपाई के लिए फरवरी 2016 में अति महत्वाकांक्षी ह्यप्रधानमंत्री फसल बीमा योजनाह्न की शुरूआत की थी। उस समय बड़े-बड़े दावे किए गए थे लेकिन पिछले तीन साल में किसान फसल बीमा योजना से पीछे हट रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 में खरीफ फसल में 404 लाख किसानों ने 382 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि में लगी फसल का बीमा कराया था। फसलों को नुकसान के एवज में बीमा कंपनियों ने उन्हें 10525 करोड़ रुपये बतौर मुआवजा दिया था, जबकि केंद्र और राज्य सरकारों ने निजी व सरकारी बीमा कंपनियों को 131018 करोड़ रुपये प्रीमियम के रूप में भरे थे। 2017-18 में खरीफ फसलों का बीमा कराने वाले किसानों की संख्या घटकर 349 लाख और कृषि क्षेत्रफल 343 लाख हेक्टयर रह गया। उस साल फसल नुकसान पर बीमा कंपनियों ने 17707 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया। वहीं, प्रीमियम के रूप में बीमा कंपनियों को 129295 करोड़ रुपये की राशि मिली। 2018 में नवंबर तकबीमा कराने वालों किसानों की संख्या 343 लाख हो गई। कृषि क्षेत्रफल की बात करें तो यह 310 लाख हेक्टेयर पर सिकुड़ गया। इस अवधि में बीमा कंपनियों को केंद्र व राज्य सरकारों से 1128214 रुपये प्रीमियम मिला। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के प्रति राज्यों का रुख सकारात्मक नहीं हैउत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और पश्चिम बंगाल ने 2017-18 के प्रीमियम का अपना हिस्सा अभी तक नहीं दिया हैवहीं, बिहार और पंजाब ने इस बीमा योजना को लाग नहीं किया है। मालम हो कि ह्यफसल बीमा योजनाह में खरीफ फसल के लिए किसानों को 1.5 फीसदी, रबी फसल के लिए 2 फीसदी और बागवानी के लिए 5 फीसदी प्रीमियम देना पड़ता है। शेष प्रीमियम राशि केंद्र व राज्य सरकारों को अदा करना होता है। बताते हैं कि केंद्र सरकार पूरा प्रीमियम भरने पर विचार कर रही है। कषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने जुलाई 2019 में लोकसभा में किसान कल्याण अनुदानों की मांग पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा था, ह्यमैं और प्रधानमंत्री दोनों ही इस बीमा योजना को अभी पूर्ण नहीं मानते हैं। कई सदस्यों ने इस योजना के बारे में सुझाव दिए हैं। सरकार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को और प्रभावी एवं लाभप्रद बनाना चाहती है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से जुड़े एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि यह वर्ष काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। अप्रत्याशित मौसम, जैसे भारी बारिश और बेमौसम ओलावृष्टि इस योजना को बेहतर ढंग से लागू करने की राह में रुकावट बन रही है। फसल बीमा योजना के क्रियान्वयन के लिए हमें बेहतर तकनीक और कौशल की जरूरत है। उत्तराखंड में करीब साढ़े पांच लाख किसान हैं। इस साल खरीफ और रबी की फसलों को मिलाकर कुल 1.80 लाख किसानों ने बीमा योजनाओं का लाभ उठाया। हालांकि, 90 फीसदी किसान वे हैं, जिन्होंने किसी बैंक या सहकारी संस्था से ऋण लिया है। ऐसे में बैंक और सहकारी संस्थाएं खुद ही अनिवार्य तौर पर उनकी फसलों का बीमा करवा देती हैं, जबकि राज्य में स्वैच्छिक फसल बीमा लेने वाले किसानों की संख्या महज 15 हजार तक सीमित है। दूसरी ओर, प्रीमियम देने में राज्य सरकार किसानों को कई तरह की रियायत देती है। इसमें खरीफ फसल का अधिकतम दो फीसदी और रबी फसल का अधिकतम 1.5 प्रतिशत ही प्रीमियम चुकाना होता है। भारतीय कृषि बीमा कंपनी की क्षेत्रीय प्रबंधक कनिका शर्मा के मुताबिक उत्तराखंड में जागरुकता की कमी के चलते बहुत कम किसान फसल बीमा का लाभ लेते हैं। झारखंड में 10 लाख 56 हजार 802 किसानों का फसल बीमा करवाया गया है।